गुप्तकाल सांस्कृतिक प्रस्फुटन या विकास का युग था। इस युग में धर्म, कला, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की अदभुत प्रगति हुई। इसलिए, अनेक विद्वानो ने गुप्तकाल को हिन्दू-पुनर्जागरण या स्वर्णयुग का काल माना है।
गुप्तकाल सांस्कृतिक प्रस्फुटन या विकास का युग था। इस युग में धर्म, कला, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की अदभुत प्रगति हुई। इसलिए, अनेक विद्वानो ने गुप्तकाल को हिन्दू-पुनर्जागरण या स्वर्णयुग का काल माना है। कवियों ने प्रशस्तिया लिखी, प्रयाग एवं मंदसौर की प्रशस्तिया क्रमशः हरिशेण और वसूल ने लिखी। इस समय के सबसे प्रख्यात कवि और नाटकार महाकवि कालिदास थे।
मालविकाग्निमित्रम्, अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा को पर आधारित है।
मालविकाग्निमित्रम्, अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा को पर आधारित है जिसकी रचना कालिदास ने की थी।
मुद्राराक्षसम् एक ऐतिहासिक नाटक कथा है जिसमे चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा वर्णित है। इसकी रचना विशाखदत्त ने की थी।
मालविकाग्निमित्रम् चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालिदास द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रंथ है। यह कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता तो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम में है। यह नाट्यकथा अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा पर आधारित है।
स्वप्नवासवदत्ता (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। इसमें महाराज उदयन एवं वासवदत्ता की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है।
स्वप्नवासवदत्ता (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है।
विशाखदत्त द्वारा रचित देवीचन्द्रगुप्तम नाट्यकथा है जिसमे चन्द्रगुप्त द्वारा शाकराज का वध पर ध्रव-स्वामिनी से विवाह का वर्णन किया गया है।
मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें नायक चारुदत्त, नायिका वसंतसेना, राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्तदास का वर्णन है।
भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिन्होंने प्रतिज्ञायौगंधरायणकम् नामक नाट्यकथा की रचना की थी। इसमें महाराज उदयन के यौगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जयिनी से लेकर भागने का वर्णन है।
गुप्तकाल सांस्कृतिक प्रस्फुटन या विकास का युग था। इस युग में धर्म, कला, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की अदभुत प्रगति हुई। इसलिए, अनेक विद्वानो ने गुप्तकाल को हिन्दू-पुनर्जागरण या स्वर्णयुग का काल माना है। कवियों ने प्रशस्तिया लिखी, प्रयाग एवं मंदसौर की प्रशस्तिया क्रमशः हरिशेण और वसूल ने लिखी। इस समय के सबसे प्रख्यात कवि और नाटकार महाकवि कालिदास थे।
मालविकाग्निमित्रम्, अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा को पर आधारित है।
मालविकाग्निमित्रम्, अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा को पर आधारित है जिसकी रचना कालिदास ने की थी।
मुद्राराक्षसम् एक ऐतिहासिक नाटक कथा है जिसमे चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा वर्णित है। इसकी रचना विशाखदत्त ने की थी।
मालविकाग्निमित्रम् चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालिदास द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रंथ है। यह कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता तो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम में है। यह नाट्यकथा अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा पर आधारित है।
स्वप्नवासवदत्ता (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। इसमें महाराज उदयन एवं वासवदत्ता की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है।
स्वप्नवासवदत्ता (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है।
विशाखदत्त द्वारा रचित देवीचन्द्रगुप्तम नाट्यकथा है जिसमे चन्द्रगुप्त द्वारा शाकराज का वध पर ध्रव-स्वामिनी से विवाह का वर्णन किया गया है।
मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें नायक चारुदत्त, नायिका वसंतसेना, राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्तदास का वर्णन है।
भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिन्होंने प्रतिज्ञायौगंधरायणकम् नामक नाट्यकथा की रचना की थी। इसमें महाराज उदयन के यौगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जयिनी से लेकर भागने का वर्णन है।
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